मेरे प्रिय कवि - गोस्वामी तुलसीदास

मेरे प्रिय कवि - गोस्वामी तुलसीदास

भूमिका - हिंदी साहित्य जगत में अनेक कवि श्रेष्ठ पैदा हुए है जिन्हीने अपने अनमोल ग्रन्थों द्वारा हिंदी को प्रतिष्ठित किया।  उन कवियों में कवि कुल शिरोमणि तुलसी दास का नाम बड़ा सम्मान से लिया जाता है।  वे जहाँ एक और कवि श्रेष्ठ थे; वही राम के परम भक्त भी थे।  मध्यकालीन अनेक भक्त कवियों में उनका नाम अग्रगण्य है। 


जन्म व वंश परिचय - कवि कुलगुरु शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास के जन्मकाल के सम्बन्ध में विद्वान लोग एक मत नहीं है।  यह बात प्राचीन व मध्यकालीन सभी कवियों के बारे में एक-सी है क्योकि उन्होंने सबके बारे में बहुत कुछ लिखा सिर्फ अपने बारे में कुछ नहीं लिखा।  इसलिए उनके जन्म काल व स्थान के बारे में सदैव संदेह रहता है।  गोस्वामी तुलसीदास का जन्म अधिकतर विद्वान सं० 1554 या इसके आस-पास मानते है।  उनका जन्म स्थान कुछ विद्वान ' राजापुर ' तथा कुछ ' सोरो ' में मानते है।  उनकी माता का नाम हुलसी तथा पिता का नाम आत्माराम दूबे था।  मूल नक्षत्र ( अशुभ नक्षत्र ) ने पैदा होने के कारण उनके माता-पिता ने उन्हें त्याग दिया।  जन्म होते ही उनकी माता का देहान्त हो गया और कुछ समय बाद पिता का भी देहावसान हो गया।  तब उन्हें मुनिया नामक दासी ने पला।  पांच वर्ष के बाद दासी का भी स्वर्गवास हो गया। 


गृहस्थाश्रम व वैराग्य - सबसे दिवंगत होने पर उनका घर सूना था।  जब वे बड़े हो गये तो उनका विवाह रत्नावली नामक विदुषी कन्या के साथ कर दिया गया।  वे रत्नावली के साथ इतना प्रेम करते थे की उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे।  कहते है कि एक दिन उनकी पत्नी बिना उन्हें सूचित किये अपने मायके चली गयी।  तुलसी पत्नी वियोग सहन नहीं  कर सके।  अतः वे रातो-रात सीधे अपने ससुराल पहुँच गये।  वहाँ पहुँचने पर उनकी पत्नी ने उन्हें फटकारते हुए कहा -

                          लाज न लागत दौड़े आयहु साथ। 

                         धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहौ मैं नाथ। 

                         अस्ति चरम मय, ता में इतनी प्रीति। 

                    तिसु आधि यदि रामप्रति, अवश्य मिटहु भव भीति। 


पत्नी के उक्त वचन तुलसी को तीर समान लगे।  उनका वह पत्नी प्रेम, राम प्रेम में परिणत हो गया।  वे घर-गृहस्थ छोड़कर विरक्त हो गये सच्चे गुरु की खोज में निकल पड़े जो उन्हें राम भक्ति के मर्म को समझा सके। 


सद्गुरू की प्राप्ति व राम भक्ति - वे सच्चे ज्ञान की खोज में कई धर्म स्थलों भटके।  अन्त में बाबा नरहरिदास के आश्रम में पहुँचे।  उनके सत्संग से तुलसी का हृदय परिवर्तन हो गया और वे राम भक्ति के मर्म को भली भांति समझ गये।  तभी स्वामी नरहरिदास  सम्पर्क में उन्होंने वेदशास्त्रों का गहन अध्ययन किया।  फलत: कुछ समय में ही वे एक महान विद्वान पुरुष बन गये।  फिर उन्होंने अपने गुरु की प्रेरणा से अनेक ग्रन्थों की रचना की। 




तुलसी के काव्य ग्रन्थ - भक्ति व कवि के गुण तुलसी  जन्मजात थे, जो समय पर वातावरण पाकर व सद्गुरु संगति में उभर कर विकसित हो गये।  उन्होंने ' रामचरित मानस ' नामक महाकव्य की रचना की जिसको लोग तुलसीकृत रामायण भी कहते है।  इस ग्रन्थ में तुलसी ने राम कथा का आदि से अन्त तक बड़ा सुन्दर व सरस वर्णन किया है।  जो भी इस काव्य का अध्ययन करता है वह रस मग्न व भाव विभोर हो जाता है।  इसके अतिरिक्त उन्होंने विनय पत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, वरवै रामायण अदि ग्रन्थों की रचना की।  अत्यंत उँचे भावो  को उन्होंने सरल से सरलतम शब्दो में व्यक्त किया।  एक साधारण व्यक्ति भी उनके भाव व विचारो को सरलता से समझ सकता है।  


उपसंहार - बनारस में अस्सी गंगा के किनारे सम्वत 1680 में गोस्वामी तुलसी दास ने अपने प्राण त्यागे।  नश्वर शरीर के नष्ट होने पर भी तुलसी के काव्य ग्रंथ आज भी भक्तो कवियों, विद्वानों व विद्यार्थीयो आदी सबके लिए प्रेरणा स्रोत। है।  आज विश्वविद्यालयो में तुलसी के काव्यों पर अनेक शोध कार्य चल रहे है, तब भी तुलसी के ज्ञान व प्रतिभा का पार नहीं प सकते है। 

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धन्यवाद।               

                                                                     :- अतुल कुमार 

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