विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी जीवन

भूमिका - हमारे प्राचीन ऋषियों ने मानव जीवन को चार आश्रमों में बांटा है - ब्रहाचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और सन्यास।  जीवन के प्रथम 25 वर्ष  ब्रहाचर्याश्रम के लिए नियत किये गए है।  यह अवधि मानव के लिए ब्रहचर्य पूर्वक विद्यार्जन के लिए निर्धारित की गई है।  इसी अवस्था को विद्यार्थी जीवन भी कहते है।  यधपि प्रत्येक मानव जीवन भर विद्यार्थी है, लेकिन प्राय: जीवन की प्रारम्भिक अवस्था को जब वह विद्या अध्ययन के लिए विद्यालय में जाता है विद्यार्थी जीवन कहते है। 


अर्थ व महत्त्व - विद्यार्थी शब्द दो शब्दों के मेल से बना है - विद्या+अर्थी।  अर्थात विद्या की अर्थी से तत्पर्य है विद्या को चाहने वाला।  विद्यार्थी जीवन सारे जीवन की आधारशाली है।  जिसकी आधारशाली मजबूत व सशक्त होती है, वह सदैव मजबूत रहता है और उसको क्षति पहुँचने की संभावना  होती है।  इसी प्रकार जीवन रूपी भवन की नींव है विद्यार्थी जीवन।  जिसके जीवन की नींव बहुत उत्तम होगी, उसका जीवन सदैव सुखमय रहेगा।  इसलिए जो विद्यार्थी परिश्रमपूर्वक विद्या अध्ययन करके अच्छी श्रेणी में उत्तीर्ण होगा, वह भविष्य में महान व्यक्ति बनकर अपने जीवन को सफल बनाता है।  इसके विपरीत जो विद्यार्थी जीवन को लापरवाही से बर्बाद कर देते है, उसका जीवन दुखमय व कठिन बनता है।  वह सदैव ठोकरें खाते है। 


विद्यार्थी जीवन की विशेषताएँ -  इस जीवन में मानव का ज्ञान अपरिपक़्व होता है।  यह जीवन का सवेरा है।  कच्ची अवस्था - कच्चा ज्ञान।  इस अवस्था में हर क्षण सिखने का है।  यह जीवन केवल विद्यालय में जाकर पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही नहीं होता, अपितु घर, बाहर, समाज में उसको पग-पग सब कुछ सीखना है।  समझदार विद्यार्थी हर बात को सीखने का उद्देश्य करता है।  जो ऐसा करता है, वही सच्चा ज्ञान प्राप्त करता है।  आजकल विद्यार्थी के लिए घरो में, विद्यालयों में, समाज में सीखने के लिए हर प्रकार के साधन उपलब्ध है।  इसलिए समझदार विद्यार्थी उपलब्ध साधनो का सदुपयोग करता है और लापरवाह विद्यार्थी उन सब की उपेक्षा कर बैठा जाता है फलत: वह जीवन भर धक्के खाता है। 



जीवन की सुखमय अवस्था - यह जीवन की मधुर अवस्था है।  यह प्रसन्ता व आनंद की अवस्था है।  इस अवस्था में वह शहनशाह का है।  न कोई चिंता और न कोई भार।  यह जीवन की उन्मुख अवस्था है।  यदि कोई चिंता व दुःख आते भी है तो वे क्षणिक होते है।  जो पानी के बुलबुले की तरह उठते है और समाप्त हो जाते है।  उछलना, कूदना, हर पल ठहाके मार कर हसना, इस जीवन की आम बात है।  हसना, मचलना साधारण बात है।  विद्यार्थी जीवन के सारे क्रिया-कलापों को मनुष्य जीवन भर याद करता है।  उन्हें स्मरण करने मात्र से ही उसको एक विशेष आनंद का अनुभव होने लगता है।  इसलिए यह जीवन की एक मधुर अवस्था है।  इसलिए अपनी एक अलग मिठास है।  जो उसे जीवन भर मिठास प्रदान करती है।  

विद्यार्थी जीवन लक्षण - हमारे यहाँ आदर्श विद्यार्थी के लिए पांच लक्षण निर्धारित किये गये है -

                          काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैवच। 
                          अल्पाहारी, गृह त्यागी, विद्यार्थी पांच लक्षणं। 

अर्थात विद्यार्थी जीवन की चेष्टा कौए की तरह, बगुले की तरह ध्यान, कुत्ते की तरह नींद होनी चहिए और अल्प आहार करने वाला और घर का मोह नहीं करने वाला होने चाहिए।  उक्त गुणों का होना नितान्त आवश्यक है।  

उपसंहार - एक आदर्श विद्यार्थी को सदैव अपने कर्त्तव्य पालन में जागरूक होना चाहिए।  अनुशासित जीवन विद्यार्थी को उंनती की चरम सीमा पर ले जाता है।  इसलिए उसको सदैव अनुशासन से रहना चाहिए।  ज्ञान ग्रहणं के लिए अपनों से बड़ो का सदैव आदर करना चहिए। 


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                                                              :-  अतुल कुमार

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