श्री गुरु गोबिंद सिंह ( Shri guru gobind sinh )

श्री गुरु गोबिंद सिंह ( Shri guru gobind sinh )

नमस्कार दोस्त। 

आज हम श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के बारे में बात करेंगे। उनका जन्म कहा और कब हुआ था। वो दसवे गुरु कैसे बने। उन्होंने धार्मिक सवतंत्र की रक्षा करते हुआ अपने जान  तक न्यौछावर कर दिए थे। चलिए शुरू करते है। 


श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 बिहार (पटना) भारत में हुआ था। हालांकि इनका जन्म दिवश सही से कही  स्पष्ट  नहीं किया गया है। इनके पिता जी का नाम गुरु तेग बहादुर था, और माता का नाम श्रीमती गुजरी था। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को बचपन में सब उन्हें गोबिंद राय  नाम से पुकारते थे।  वह पटना में सिर्फ 4 वर्ष रहे।  और उनके घर का नाम तख्त सहित पटना साहिब के नाम से जाना जाता है। 


श्री गुरु गोबिंद जयंती :-  उनकी जयंती सिख धर्म में बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसलिए क्योकि उनकोने खालसा पंथ की  स्थापना की थी  तथा सिख धर्म के लोगो को अच्छी और सकारात्मक बाते सिखाये थे। वह महान अत्याधमिक गुरु, योद्धा दार्शनिक और कवि भी थे।  


श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की तीन सादिया हुए थी। उनका पहला विवाह 21 जून 1677 में 10 साल के उम्र में हुआ था। उनका दूसरा विवाह 4 अप्रैल  1684 में 17 साल के उम्र में हुआ था। और तीसरा सदी 15 अप्रैल 1700 में 33 साल के

उम्र में हुआ था। उनकी पहली पत्नी का नाम माता जीतो था जिनके एक पुत्र थे। उनके पुत्र का नाम फतेह सिंह था। उनके दूसरे पत्नी का नाम माता सुंदरी था। उनका भी एक पुत्र था। जिनका नाम अजीत सिंह था। और उनके तीसरी पत्नी  नाम माता साहिब देवां था। और उनके दो पुत्र थे।  जिनके  नाम  जुझार सिंह और जोरावर सिंह था। 


श्री गुरु गोबिंद सिंह के पिता 9 सिख गुरु थे  श्री गुरु तेग बहादुर सिंह। जिनकी हत्या सम्राट औरंगजेब द्वारा करा दी गयी थी। अपने पिता के मृत्यु के बाद ही 9 वर्ष में ही उन्हें 10 वां और अंतिम  गुरु बनाया  गया था।  गुरु गोबिंद जी के जीवन काल में 4 पुत्र थे। जिनमे दो पुत्रो की मृत्यु युद्ध के द्वारा हुआ था। और दो पुत्रो को मुग़ल सेना द्वारा मरा दिया गया था। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने गरीबो की रक्षा करते हुआ और पाप  का खात्मा करते हुआ 14 युद्ध लड़े जिनमे से 13 युद्ध मुग़ल साम्राज्य के ख़िलाफ़ लड़े थे। 


श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु  कथा :- गुरु गोबिंद जी को वजीत खान मारना चाहता था और वो सफल भी हुआ था।  जब एक हत्यारे से युद्ध कर करे थे तो उनके दिल के उपर एक गहरी चोट लग गयी थी। जिसके कारण उनकी  मृत्यु हो गयी थी। उनकी मृत्यु 42 के आयु में 18 अक्टूबर 1708 नांदेह में उनकी मृत्यु हुए थी। 

अंत समय में  श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने शिक्खो को गुरु ग्रन्थ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा और वो खुद भी उनके सामने माथा टेके थे।  फिर वो दिव्य ज्योति में लीन हो गए।  

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धन्यवाद दोस्तों। 

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